मौनी अमावस्या: एक पवित्र पर्व मौनी अमावस्या सनातन धर्म में… एक विशेष महत्व रखती है
मौनी अमावस्या सनातन धर्म में एक विशेष महत्व रखती है। यह पर्व माघ मास की अमावस्या को मनाया जाता है और इसे “मौन” रहने तथा आत्मचिंतन करने का दिन माना जाता है। मौनी अमावस्या को तीर्थ स्नान, दान, और ध्यान का दिन कहा गया है। इस दिन का संबंध आत्मिक शुद्धि और पवित्रता से है।

मौनी अमावस्या का महत्व
- इस दिन मौन रहने का उद्देश्य आत्मनिरीक्षण करना और मन को शुद्ध करना है।
- ऐसा कहा जाता है कि इस दिन किया गया दान और पूजा कई गुना फल प्रदान करती है।
पौराणिक कथा के अनुसार
मौनी अमावस्या को भारतीय संस्कृति में एक पवित्र दिन के रूप में देखा जाता है। मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदियों, विशेषकर गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर स्नान करने से पापों का नाश होता है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मौनी अमावस्या से जुड़ी एक कथा के अनुसार, यह वही दिन है जब ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। इसे “मौनी” इसलिए कहा गया क्योंकि इस दिन ब्रह्माजी ने मौन व्रत का पालन किया था। यही कारण है कि इस दिन मौन रहने का विशेष महत्व है।
मौनी अमावस्या पर विशेष कार्य करना चाहिए
- संगम पर स्नान: प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर स्नान का विशेष महत्व है।
- दान-पुण्य: इस दिन अन्न, वस्त्र, और धन का दान किया जाता है।
- मौन व्रत: मौन रहकर ध्यान और साधना करना आत्मा को शुद्ध करता है।
- सूर्य देव की पूजा: इस दिन सूर्य देव की पूजा करके उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।

निष्कर्ष
मौनी अमावस्या न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आत्मिक शांति और आत्मनिरीक्षण का पर्व है। यह दिन हमें अपने भीतर झांकने और जीवन के असली उद्देश्य को समझने का मौका देता है।